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Thursday, November 3, 2022

ठौर

 


कदंब मन में कहीं
उग आया है
उसके अहसास हमें
खींच रहे हैं अपनी ओर।
कदंब का पेड़
अब भी रीता है
इन गर्बीले फलों के साथ
इंतज़ार में
तुम्हारे कान्हा।
फिर बसा दीजिए ना
वृंदावन
फिर छेड़ दीजिए ना
बांसुरी की तान
देखिए अब भी
गोपियां वहीं आपका इंतज़ार कर रही हैं
और रोज
बुहार रही हैं
कदंब का ठौर।

ये हमारी जिद...?

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