कागज की नाव
इस बार
रखी ही रह गई
किताब के पन्नों के भीतर
अबकी
बारिश की जगह बादल आए
और
आ गई अंजाने ही आंधी।
बच्चे ने नाव
सहेजकर रख दी
उस पर अगले वर्ष की तिथि लिखकर
जो उसे
पिता ने बताई
यह कहते हुए
काश कि
अगली बारिश जरुर हो।
कविताएं मन तक टहल आती हैं, शब्दों को पीठ पर बैठाए वो दूर तक सफर करना चाहती हैं हमारे हरेपन में जीकर मुस्कुराती हैं कोई ठोर ठहरती हैं और किसी दालान बूंदों संग नहाती है। शब्दों के रंग बहुतेरे हैं बस उन्हें जीना सीख जाईये...कविता यही कहती है।
कागज की नाव
इस बार
रखी ही रह गई
किताब के पन्नों के भीतर
अबकी
बारिश की जगह बादल आए
और
आ गई अंजाने ही आंधी।
बच्चे ने नाव
सहेजकर रख दी
उस पर अगले वर्ष की तिथि लिखकर
जो उसे
पिता ने बताई
यह कहते हुए
काश कि
अगली बारिश जरुर हो।
सुना है गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं तापमा...
बेहतरीन अभिव्यक्ति सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार २८ नवम्बर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आभार आपका
Deleteहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति । सादर वन्दे !
ReplyDeleteबहुत आभार आपका
Deleteमार्मिक ! बारिश ज़रूर आएगी अगर इंसान पेड़ लगाना सीख ले और काटना छोड़ दे
ReplyDeleteआभार आपका
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