प्रेम
तुम्हारे चेहरे पर
मुझे देखकर
आने वाली मुस्कान ही तो है।
प्रेम
तुम्हें छूते ही
गहरे तक आंखों में सुर्खी का घुल जाना
प्रेम ही तो है।
प्रेम
तुम्हें बार-बार दरवाजे तक लाता है
मेरे इंतजार में
और मुझे
हर रात कई बार
तुम्हें गहरी नींद में सोए देखने
और देखकर
आनंद पाने को जगाता है।
प्रेम
तुम्हारे शरीर में आत्मा
और भाव का स्पंदन है
और
मेरे शरीर में
तुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।
सच
प्रेम परिभाषित नहीं हो सकता
क्योंकि
वह
जिंदगी पर नेह से
उकेरा गया
महावर है
जिसका अर्थ
एक स्त्री से अधिक कोई नहीं समझ सकता।
Thanks for photograp google
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंबहुत सुंदर 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंतुम्हारे हर पल होने का शास्वत सत्य।
जवाब देंहटाएंप्रेम को परिभाषित करती बहुत गहरी कविता!
बहुत आभार आपका।
हटाएंप्रेम की अनुपम परिभाषा
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
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