कोई कविता
तब
हरी हो उठती है
जब
पत्तियों के
शरीर पर
बूंदों का
स्पर्श होता है।
कोई कविता
तब
हरी हो उठती है
जब
सूखे
नैन
बावरी के नम हो जाते हैं
परदेस
से
मिली पिया की
चिट्ठी पाकर।
जिसे वो छाती से लगाए
उल्हड़ सी भागती है
जंगल की ओर
अपना
आंचल बचाते हुए।
कोई कविता
तब
हरी हो उठती है
जब
चातक
बूंद पाकर
आकाश की ओर देख
मुस्कुराता है।