सांझ
कभी ठहरकर देखो
एक
पूरी रात
बिना सतरंगी सपनों के।
देखो तो सही
एक पूरी आबादी
बे -सपना
बदहवास सोती है
पूरा दिन थककर।
ठहरो तो पाइपों में
झांक लेना
क्योंकि
कहते यहां जिंदगी
अभी तक जाग नहीं पाई।
पाइप के सिराहने
सपने नहीं
भय बुनता है जीवन।
ठहरो तो
घनी बस्ती हो आना रात
सदियों ऐसी बस्ती
सांझ
नहीं देख पाती।
झोपड़ियों में जागते
कुछ बच्चे मिलें
तो उन्हें दे आना
उम्मीद
कि
सुबह होगी
बेशक
वे
झिझकेंगे
क्योंकि
उनका जीवन
केवल अंधेरे को पढ़ता है
समझता है
जीता है
अपनाता है
सांझ
में सतरंगी सपने भी होते हैं
वे कहां जानते हैं...।
जानता हूँ
रात
और
अधेरा
किसी को पसंद नहीं
लेकिन
एक आबादी
रात
जीती है
रात
मरती है
सुबह के इंतज़ार में..।