Followers

Showing posts with label आंखें सुर्ख शरीर मौन खामोशी कोरोना कविताएं आसमान निःशब्द. Show all posts
Showing posts with label आंखें सुर्ख शरीर मौन खामोशी कोरोना कविताएं आसमान निःशब्द. Show all posts

Saturday, April 17, 2021

शरीर चल रहे हैं, आंखें सुर्ख हैं


 कोरोना काल में कविताएं...

2.


जीवन

बुन रहा है

आंसुओं का नया आसमान।

चेहरे 

पर 

चीखती लापरवाहियां

भुगोल होकर 

इतिहास 

हो रही हैं।

घूरती आंखों के बीच

सच

निःशब्द सा 

खिसिया रहा है। 

सूनी

डामर की तपती सड़कें

बेजान 

मानवीयता के 

अगले सिरे पर सुलगा रही है

क्रोध।

चीख

तेजी से मौन

ओढ़ रही है। 

आंखें घूर रही हैं

बेजुबान

सी

सवाल करना चाहती हैं

कौन

है 

जिसने बो दी है

इस दुनिया में

ये जहर वाली जिद।

कौन है 

जिसकी सनक ने

मानवीयता को कर दिया है

बेजुबान।

कौन है

जिसे

फर्क नहीं पड़ता 

आदमी के बेजान 

शरीर में तब्दील हो जाने पर।

शरीर 

चल रहे हैं

आंखें सुर्ख हैं

शिकायत 

और शोर 

अब मौन में तब्दील है

सब 

तलाश रहे हैं

एक जीवन

एक सच

और

एक खामोशी।

कागज की नाव

कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...