फूलों की देह
पर
जंगली
सुगंध के निशान
उभरे हुए हैं।
प्रेम का जंगल
हो जाना
सभ्यता
को
ललकारना नहीं है।
जंगल
के बीच कहीं कोई
प्रेम
अंकुरित हो रहा है
पथरीली
जमीन
पर
पांव
के
निशान हैं।
ये
निश्चित ही प्रेम है।
फूलों
के चेहरों पर
उम्र
की शोखी
है
और
पत्तों की उम्र
में सयानेपन
धमक।
प्रेम
फूलों के
कानों में
होले से
सुना जाती है
कोई
जंगली
गीत
और प्रेम
वृक्ष हो जाता है
जो
अनुभूति
का स्पर्श
सदियों पाता है।
प्रेम
ऐसा ही होता है
जंगली खुशबू लिए...।