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Thursday, June 8, 2023

कोई नदी तो होगी


कोई नदी तो होगी
जो 
ठहर जाएगी
सूखने के पहले
उन्हें बर्फीली कंद्राओं में।
कोई नदी तो होगी
जो 
हमारे जहां तक 
आने के पहले ठहर जाएगी
अपने अपनों के बीच।
कोई नदी तो होगी
जो
रास्ते रास्ते
ठहर ठहरकर 
पूछेगी सवाल
जल को स्याह करने वालों से।
कोई नदी तो होगी
जो 
रसातल में समाने से पहले
आदमी का अतीत उकेर जाएगी।
कोई नदी तो होगी
जो
वर्तमान और भविष्य के बीच 
वैचारिक फफोलों को उजागर कर जाएगी।
कोई नदी तो होगी 
जो 
बहने से पहले राह देखेगी
नीयत देखेगी
बातों का सूखापन देखेगी
और 
देखेगी आदमी में कैद आदमी
के अनंत दुराभाव।
कोई नदी तो होगी
जो सुन रही होगी
शेष नदियों की चीख
रुदन
और 
प्रलाप।
कोई नदी तो होगी
जो 
कलयुग के अंत तक
टिकी रहे 
और
प्रयास करती रहे 
पृथ्वी को बचाने का,
बेशक वह भीष्म जैसी हो पर क्रोध न दिखाए।
कोई नदी तो अवश्य होगी
जो 
मानव के वर्तमान कर्मों की सजा
उसकी 
मासूम पौध को नहीं देगी।
यकीनन कोई नदी तो अवश्य होगी
जो पिघलती बर्फ को 
समेट ले अपनी देह में
और छिपा ले
कहीं किसी कंद्रा की दरारों में
पर्वतों की भुजाओं में।
कोई नदी तो होगी
जो उम्मीद संभाले बैठी रहे
उस हिमालय पर
जहां सबकुछ पानी पानी होने लगा हैं 


 

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