Followers

Showing posts with label कोरों सुबह सांझ घर यादें जीवन दोपहर गूंथ मानवीय. Show all posts
Showing posts with label कोरों सुबह सांझ घर यादें जीवन दोपहर गूंथ मानवीय. Show all posts

Saturday, August 14, 2021

उदासियों के दिनों में

 तुम्हारे

भरोसे में

शब्दों की

प्रतिबद्धता

से परे

मैं अक्सर

देखता हूँ

शब्दों को

मौन होते।

तुम

भरोसे वाली

सुबह

पूरा दिन

सहेज लेती हो

बिना

शब्दों को दोहराए।

अक्सर तुम्हारे

अनकहे शब्द

आंखों में

समा जाया करते हैं

जो

उदासियों के दिनों में

तुम्हारी कोरों का

नमक

होते हैं।

सुबह और सांझ के बीच

तुम

सबकुछ कितने

करीने से

सहेज लेना चाहती थीं

घर, यादें, हमारा जीवन

और बहुत कुछ।

सुबह से दोपहर

के कुछ बाद तक का

ये सफर

देखता हूँ

अब अधिक खामोश

हो गई हो।

मैं जानता हूँ

तुम

अब

गूंथ रही हो

हमारी सांझ

और

बच्चों की सुबह

के बीच

एक मानवीय सा

रिश्ता।

मैं जानता हूँ

कभी कभी जिंदगी

से बेहतर

बुन लिया करते हैं

हम समय को।

तुम

और

तुम्हारा

यूं रिश्तों में गहरे

उतरे रहना

हमें पसंद है।

अक्सर

जब तुम

घर की बालकनी में

सुनती हो

पक्षियों की चहचहाहट

मुझे लगता है

तुम जैसे

समय पढ़ रही हो।

तुम्हारे अंदर

मुस्कान

अब ठहरने लगी है

मैं

तुम्हें

शब्दों से परे

मौन

को पढ़ने की

इजाजत नहीं दूंगा

क्योंकि

अभी हमारी पुस्तक के

काफी पन्ने

कोरे हैं...।

शब्द

अब भी

बहुत कुछ

गढ़ना चाहते हैं हमें

सुनो

शब्दों की ही सुन लेते हैं

कोई

नई ताल...।







ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...