Followers

Showing posts with label घर जीवन अट्टहास सिसकी मकान दालान फर्श. Show all posts
Showing posts with label घर जीवन अट्टहास सिसकी मकान दालान फर्श. Show all posts

Thursday, April 8, 2021

कच्ची और अधूरी छत


 कुछ

घर

केवल 

अधूरे रह जाने के लिए

बनते हैं।

जीवन 

की सिसकी

और

अट्टहास

उन दीवारों को

नहीं 

मिलते

उन्हें 

केवल 

एकांत मिलता है।

मौन 

के 

चीखते 

शब्द उन्हें

जीवित रखते हैं।

मकान से घर 

के 

सफर के 

अधबीच

बो दिए जाते हैं

दालान।

चीखते मकानों

की तरह

चीखते 

घर 

अच्छे नहीं लगते।

कुछ 

घर 

अधूरे 

भी पूरे

से लगते हैं।

कच्ची 

दीवारें

मन के फर्श के साथ

अंगुली थामें

पूरा घर घूम आती हैं।

कच्ची और अधूरी छत

सवाल 

नहीं पूछती

हर 

बार 

बातों ही बातों में

परिवार के बीच 

आ बैठती है

ठहाकों की महफिल में।

आंगन

भीगने की शिकायत 

नहीं करता

कैसा 

पागल है

हंसता ही रहता है।

घर

अधूरे 

और 

पूरे

ठहाकों 

से बनते हैं। 

वे 

बनकर भी अधूरे रह 

जाते हैं

बिना 

बतियाये।

वे अधूरे होकर भी

पूरे हो जाते हैं

मुस्कुराते 

हुए।

घर 

खुद का नहीं

आपका 

प्रतिबिंब होता है

जिसमें 

आपकी शक्ल, हालात और

व्यवहार 

हर पल 

नज़र आते हैं...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...