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Tuesday, August 3, 2021

हम साक्षी नहीं होना चाहते

 तुम्हारा साथ

पौधों के नेह जैसा ही है

गहरे से अंकुरण 

गहरे से अपनेपन

और 

गहरे से भरोसे की चाह

और

उस पर 

हरीतिमा बिखेरता हुआ। 

हम

और तुम

साक्षी हैं

धरा पर बीज के

बीज पर अंकुरण के

अंकुरण पर पौधा हो जाने के कठिन संघर्ष के 

पौधे के वृक्ष बनने के कठिन तप के

उस पर गिरी बूंदों के

ठंड में ठिठरुती उसकी पत्तियों की आह के

गर्मी में झुलसते 

उसके सख्त बदन के पत्थर हो जाने के

और

उस वृक्ष पर 

घौंसले बनाकर बसने वाले

चुबबुले परिंदों के

उनकी उम्मीदों के

उस छांव में 

सुस्ताने वाले 

राहगीरों के

उनके थके पैरों की बिवाई के

और

छांव पाकर आई 

गहरी नींद के।

हम साक्षी नहीं होना चाहते

उस वृक्ष के कटने के

उन घौंसलों के उजड़ने के

उन परिंदों के हमेशा के लिए लौट जाने के

छांव को धूप के निगल जाने के

फटी बिवाई से रिसते रक्त के

हम साक्षी नहीं होना चाहते

बंजर धरा के

प्यासे कंठों के 

सूखते जलाशयों के 

बारी-बारी मरते पक्षियों के

पानी पर लड़ते इंसानों के

और

हम साक्षी नहीं होना चाहते

ऐसी प्रकृति के

जिसमें

केवल 

स्वार्थ के पथरीले जंगल हों

जहां

का कोई रास्ता

जीवन की ओर न जाता हो।





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