Followers

Showing posts with label दस्तक. Show all posts
Showing posts with label दस्तक. Show all posts

Friday, November 4, 2022

हम बदल रहे हैं


रात भर ठंड में

कराहता रहा एक शख्स

दरवाजे पर उसके

दस्तक भी दी

और

कराह भी गूंजी।

नहीं टूटी नींद

और 

न ही खोला द्वार।

सुबह

वह शख्स मर गया

दरवाजा खुला 

उस पर चादर ओढ़ा दी गई

और 

चार लोग सहानुभूति में एकत्र किए गए

करवा दिया गया उसका अंतिम संस्कार।

लोग 

उसे बड़ा समाजसेवी कह

थपथपा रहे थे पीठ

वह विनम्र होकर भीड़ के सामने रोनी सूरत लिए

कोस रहा था उस रात की नींद को।

मुस्कुराता वही व्यक्ति 

दोबारा घर में दाखिल हुआ

और

सोफे पर पसरकर 

हाथ में गिलास लेकर 

पलटाने लगा 

मैग्जीन के नग्नता से भरे पन्ने

ठहाके लगाकर हंसने लगा

यह कहते हुए 

हां 

कल रात नींद बहुत मीठी थी

और 

आज का दिन यादगार। 


ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...