सीले से
सपने
रंग खोते हैं
कुछ पीले
से
फीके रंग के
सपने।
कुछ जो
बचपन में
दबाये थे
मिट्टी के घरों में
महक रहे हैं
अब भी।
सपनों के पैर होते हैं
चेतना भी
तभी
हमारी अचेतन अवस्था में
खटखटाया करते हैं
मन के कपाट।
वो
जागते हैं
पूरी रात।
हां, बस सपनों की
उम्र
तय होती है
हमारी चेतना के
कोलाहल पर।
वे रंगहीन
हो जाते हैं
जब
रख दिए जाते हैं
मन के किसी
बंद से रौशनदान के करीब
जहां नहीं मिलती
सपनों को प्राण वायु।
हां पीले से सपने
जीवित रहते हैं
सदियों तक...।
अबकी सपनों को
स्याह अंधेरे से निकाल
धूप दिखाना चाहता हूँ
पकती उम्र
के पथराये रास्तों पर।
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आर्ट- श्री बैजनाथ सराफ, वशिष्ठ जी...। खंडवा, मप्र। आदरणीय बैजनाथ जी देश के उन ख्यात आर्टिस्ट में से हैं जिन्होंने अपनी पूरी उम्र कला को समर्पित की है, उनका पसंदीदा विषय (गहराई) है