Followers

Showing posts with label बूंद. Show all posts
Showing posts with label बूंद. Show all posts

Thursday, August 4, 2022

युग अपने पैरों लौट जाएगा

कोई उम्मीद

पत्तों पर नूर सी 

महकती है।

पत्तों पर उम्र गुजार 

समा जाती है 

सशरीर

बिना शर्त

क्योंकि

रिश्तों में अनुबंध नहीं होता। 

हरापन 

देकर 

पत्तों से जीवन का दर्शन

सीखकर

बूंद 

का आभा मंडल दमकता है। 

बूंद एक युग है

जो सूख रहा है

मानवीय शिराओं में। 

हरापन 

बूंद को सहेज 

एक उम्मीद गढ़ती है हर रोज।

सांझ 

उम्मीद की पीठ फफोले से पट जाती है

पूरा दिन

उस बूंद में आखेट करता है

और समा जाता है

उसी के गर्भ में..।।

अबकी युग अपने पैरों 

लौट जाएगा

सूखे और बिलखते आपदाग्रस्त 

विचारों से 

हारकर...। 

कोई युग कैसे ठहरेगा

इस 

बेसुरे विचारों के बीच।

 

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...