परों से
उड़ती है तितली
तब जाकर
पाती है
फूलों का प्रेम
और
जीवन का रस।
धूप सहती है
नुकीले कांटे भी
रोकते हैं राह
बचती
खिलखिलाती
फूलों के मन को
छू ही लेती है
क्योंकि भरोसा अपनी पीठ पर
रोज रखती है
उड़ने से पहले तितली।
आसमान
छूना
और आसमान पर बने रहना
ऐसी कोई ख्वाहिश
नहीं रखती
ये तो
रंगरसिया है
रंगों में जीती
रंगों से जीवन को सीती
यूं ही भरती है कई
उड़ान।
कभी दूसरी तितली का नहीं करती
प्रतिकार
क्योंकि
जानती है
ये बागान
उनकी उड़ान
और
रंगों से उत्साह पाता है
जीवन पाता है।
सीख लें..
कि
शिकायत नहीं करती
परों के टूटने पर
खामोशी से तिनकों पर
सिर रख सी लेती है
परों के घाव..।।
सीख लें
मनबसिया से
खुशबू सहेजना
और उसे बांटना सभी के बीच
खिलखिलाते हुए....।