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रविवार, 2 जनवरी 2022

ये तो रंगरसिया


हजार बार नन्हें

परों से 

उड़ती है तितली

तब जाकर 

पाती है

फूलों का प्रेम 

और 

जीवन का रस।

धूप सहती है

नुकीले कांटे भी

रोकते हैं राह

बचती 

खिलखिलाती

फूलों के मन को

छू ही लेती है

क्योंकि भरोसा अपनी पीठ पर

रोज रखती है

उड़ने से पहले तितली।

आसमान 

छूना 

और आसमान पर बने रहना

ऐसी कोई ख्वाहिश

नहीं रखती

ये तो

रंगरसिया है

रंगों में जीती

रंगों से जीवन को सीती

यूं ही भरती है कई

उड़ान।

कभी दूसरी तितली का नहीं करती 

प्रतिकार

क्योंकि

जानती है

ये बागान

उनकी उड़ान

और 

रंगों से उत्साह पाता है

जीवन पाता है।

सीख लें..

कि 

शिकायत नहीं करती 

परों के टूटने पर

खामोशी से तिनकों पर 

सिर रख सी लेती है

परों के घाव..।।

सीख लें

मनबसिया से

खुशबू सहेजना

और उसे बांटना सभी के बीच

खिलखिलाते हुए....।


प्रेम

  कोई प्रेयसी ही थी,  हां  एकाकी जीवन जीते हुए कथा हो गई। किताब के पन्नों में महानता का दर्जा पाकर लेटी है शब्दों को सिराहने लगाए सदियों से ...