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Wednesday, May 26, 2021

गली के नुक्कड़ का लैटर बाक्स


 सुनो ना..

वो

गली के नुक्कड़ का

लैटर

बाक्स

कितना बूढ़ा हो गया है।

कल

ठहरा था कुछ पल

उसके करीब।

उम्र

का भारीपन

शरीर पर हावी हो गया है

हां

लेकिन वो कुटिल

मुस्कान नहीं गई

अब तक।

मैं नेटवर्क नहीं मिलने से

उस पर हाथ टेककर

खड़ा था

वो ठहाके लगाने लगा

वो पूछ रहा था

बातों में और रिश्तों में

गरमाहट

बाकी है अभी।

मैं चुप हो गया

वो देखता रहा

मैं नज़र चुराने लगा

तभी उसने

तीन पुरानी और पीली

चिट्ठियां मेरी ओर

बढ़ा दीं।

मैं अपलक देखता रहा

उनके छूते ही

कुछ अजीब सा हुआ

तुम

और

तुम्हारा वो

शब्द हो जाना

याद आ गया।

चिट्ठी की पीठ पर

लिखे पते

धुंधले हो चुके थे।

खोलकर देखा

लैटर बाक्स ने पूछा

क्या हुआ

किसका है ये

बिसराया हुआ खत।

मैं

डबडबाई आंखों को पोंछते

हुए बोला

पिता का मेरे लिए।

अब पिता नहीं हैं

केवल खत है

उनकी लेखनी

और छूकर

देखी जा सकें

वो भावनाएं..।

दूसरा खत

पड़ोस के मिस्त्री का था

जो

अपने बेटे को

बताना चाहता था

मरने से पहले

कि

वह उसे

बहुत चाहता है।

तीसरे खत पर

पानी ने

मिटा दी थी

पहचान

बस

अंदर लिखा था

कभी तो

एक चिट्ठी लिख दिया कर

बेटा

हममें प्राण आ जाते हैं...।

दो खत

लैटर बाक्स को लौटाकर

लौट आया

घर

पिता की चिट्ठी लिए...।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...