गांव के घर
और
महानगर के मकानों के बीच
खो गया है आदमी।
गांव को
लील गई
महानगर की चकाचौंध
और
महानगर भीड़ के वजन से
बैठ गए
उकडूं।
हांफ रहे हैं महानगर
और
एकांकी से सदमे में हैं गांव।
गांवों के गोबर लिपे
ओटलों पर
बुजुर्ग
चिंतित हैं
जवान बेटों के समय से पहले
बुढ़या जाने पर।
तनकर चलने वाला पिता
झुकी कमर वाले पुत्र को देख
अचंभित है
क्या महानगर कोई
उम्र बढ़ाने की मशीन है?
थके बेटे को खाट पर बैठाए
पिता देते हैं
कांपते हाथों पानी
और
खरखरी वाली आवाज़ में सीख
गांव लौट आओ
तुम बहुत थक गए हो।