यह हम हैं
हमारा वक्त
हमारी उम्र
और
जीवन का संपूर्ण दर्शन।
सब कुछ तो पिघल जाता है
तपता है
बनता है
टूटता है।
देखो पिघलते दौर में
कुछ सपने अब भी हैं उस लौ के इर्दगिर्द।
सुना है
पिघल जाता है
वक्त
और
इतिहास।
देखो उस रौशनी के इर्दगिर्द
कुछ सीला सा वक्त है
और सपने भी।
जो वक्त सूख रहा है
हमारे लिए।
उससे दोबारा बुनेंगे
हम
अपने आप को
अपने विचारों और सपनों की दरारों को।
देखना सबकुछ कहां पिघलता है
बचे रह जाते हैं
कहीं न कहीं हम
और हमारा भरोसा, साथ और बहुत कुछ अनकहा सा।