ये पीला सा वसंत
उन उम्रदराज़ आंखों में
कोरों की सतह पर
नमक सा चुभता है
और
आंसू होकर
यादों में कील सा धंस जाता है।
धुंधली आंखें वसंत
को जीती हैं
ताउम्र
जानते हुए भी
नमक की चुभन।
वसंत उम्रदराज़ साथी सा
सुखद है
जो कांपते शरीर
जीवित रखता है
अहसासों का रिश्ता।
वसंत तब अधिक चुभता है
जब
टूट जाती है साथी से
अहसासों की डोर।
तब
बचता है केवल पीला सा सन्नाटा
जो चीरता है
शरीर और अहसासों को
तब
सपने सलीब पर रख
शरीर पीले होने लगते हैं।
हां
वसंत
उम्रदराज़ नहीं होता
केवल सुलगता है
थके शरीरों की पीठ पर।