किसी
निर्बल और सूखे वृक्ष की टहनी
से बेशक
हरेपन की उम्मीद
सूख जाए
लेकिन
कोई थका हुआ पंछी
उस पर
सुस्ताने ठहरता तो है।
सूखे वृक्ष
बेशक
हमारे वैचारिक दायरे में भी
सूख जाया करते हैं
लेकिन
उस पर कुछ
जीव
रेंगते तो हैं।
हम बेशक मान लें
कि
सूखा वृक्ष
अब
धरा पर बोझ है
लेकिन
उसकी जड़ों में
संभव है
पल रहा हो
कोई
कोई पौधा
उसके अनुभव की
मिट्टी और खाद पाकर।
हम बेशक मान लें
कि
सूखा
वृक्ष
भयावह लगता है
लेकिन
उस पर बैठ
कभी तो
कोई पक्षी
आलिंगन करता होगा
नए जीवन की
दिशा
बुनने के लिए।
बेशक सूखे
शरीर अंत का आग़ाज हैं
लेकिन
सूखे
वृक्ष
और उसकी शाखाएं
अक्सर
बुन रही होती हैं
हमारे लिए
भविष्य की मौन हरियाली
जीवन
उम्मीद
और अपनत्व।