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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

मौन हरियाली












किसी 

निर्बल और सूखे वृक्ष की टहनी 

से बेशक

हरेपन की उम्मीद 

सूख जाए

लेकिन 

कोई थका हुआ पंछी

उस पर

सुस्ताने ठहरता तो है।

सूखे वृक्ष

बेशक

हमारे वैचारिक दायरे में भी

सूख जाया करते हैं

लेकिन

उस पर कुछ

जीव

रेंगते तो हैं।

हम बेशक मान लें

कि

सूखा वृक्ष

अब 

धरा पर बोझ है

लेकिन

उसकी जड़ों में

संभव है

पल रहा हो 

कोई

कोई पौधा

उसके अनुभव की

मिट्टी और खाद पाकर।

हम बेशक मान लें

कि 

सूखा

वृक्ष

भयावह लगता है

लेकिन

उस पर बैठ

कभी तो

कोई पक्षी

आलिंगन करता होगा

नए जीवन की

दिशा 

बुनने के लिए।

बेशक सूखे

शरीर अंत का आग़ाज हैं

लेकिन

सूखे

वृक्ष

और उसकी शाखाएं

अक्सर

बुन रही होती हैं

हमारे लिए

भविष्य की मौन हरियाली

जीवन

उम्मीद 

और अपनत्व।

 

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...