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Wednesday, April 21, 2021

हरापन शेष है


 कोरोना काल पर कविताएं

5.

अहसास की धरती

मरुस्थल

में

तब्दील कर दी गई है।

भावनाओं की दुर्वा 

सूखाकर

लालच का नमक

डालकर

संबंधों को

जंगल में तब्दील कर दिया गया।

अब अहसास की धरती

कंटीले

पौधों

पर

उग रहे

पीले फूलों को देख

सूखती जा रही है।

इस जंगल में

अब भी

कहीं

मन कंद्रा में

कोई दूब घास है

जिसमें

उम्मीद

का हरापन शेष है।

दूरियों की खाई अब

और 

गहरी है

अब 

सूखते अकेले शरीर

बेजान होकर सूखा कुआं हो गए हैं

जिसमें

बाज़ार अपनी महत्वाकांक्षाओं का

कूढ़ा उड़ेल रहा है।

सबसे ताकतवर प्राणी का शरीर

अब डस्टबिन हो गया है।

बाज़ार

और

उसके 

पिट्ठूओं को पहचानकर ही

जंगल

को अहसास में 

तब्दील किया जा सकता है।

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...