कोई सुबह तुम्हारे पैरों के तलवे में दबकर मुस्कुराहट बिखेरती है। तुम्हारे चलने और रंग बिखेरने के बीच कहीं कोई उम्मीद हर बार आकार लेती है। तुमसे उम्मीद का एक गहरा रिश्ता है पंखों पर बिखरे रंगों की तरह। तुम किसी और दुनिया की परी लगती हो हमारे जहां में...। आओ उड़ना सिखाओ हमें भी कि धरा पर
भीड़ बहुत है...।
अहा! अतिसुन्दर और मनमोहक ...
ReplyDeleteक्या कहने ... सत्य कहा, धरा पर ... भीड़ बहुत है 👌👌
.... 'पुरवाई' का अभिनन्दन है
बहुत बहुत बधाई ...
जी बहुत आभार सीमा जी...।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली रहना पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteअति भावपूर्ण पवित्र एहसास से भरी सुंदर रचना।
ReplyDeleteप्रणाम सर
सादर।
कि
ReplyDeleteधरा पर
भीड़ बहुत है...।
बहुत सुन्दर रचना 👌
गहन भाव गागर में सागर।
ReplyDeleteसुंदर सृजन।
हमारे
ReplyDeleteजहां में...।
आओ
उड़ना सिखाओ
हमें भी
कि
धरा पर
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर चिंतनपरक
लाजवाब सृजन।
हमें भी उड़ना सिखाओ .... भीड़ से बचाव का ये रास्ता बहुत भाया ।
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