Followers

Thursday, February 4, 2021

भीड़ बहुत है

 






कोई सुबह तुम्हारे पैरों के तलवे में दबकर मुस्कुराहट बिखेरती है। तुम्हारे चलने और रंग बिखेरने के बीच कहीं कोई उम्मीद हर बार आकार लेती है। तुमसे उम्मीद का एक गहरा रिश्ता है पंखों पर बिखरे रंगों की तरह। तुम किसी और दुनिया की परी लगती हो हमारे जहां में...। आओ उड़ना सिखाओ हमें भी कि धरा पर



भीड़ बहुत है...।

9 comments:

  1. अहा! अतिसुन्दर और मनमोहक ...
    क्या कहने ... सत्य कहा, धरा पर ... भीड़ बहुत है 👌👌
    .... 'पुरवाई' का अभिनन्दन है
    बहुत बहुत बधाई ...

    ReplyDelete
  2. जी बहुत आभार सीमा जी...।

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण रचना,संगीता दी के प्रयास के फलस्वरूप आज आपकी पहली रहना पढ़ने का सौभाग्य मिला,सादर नमन

    ReplyDelete
  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  5. अति भावपूर्ण पवित्र एहसास से भरी सुंदर रचना।

    प्रणाम सर
    सादर।

    ReplyDelete
  6. कि
    धरा पर
    भीड़ बहुत है...।
    बहुत सुन्दर रचना 👌

    ReplyDelete
  7. गहन भाव गागर में सागर।
    सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  8. हमारे
    जहां में...।
    आओ
    उड़ना सिखाओ
    हमें भी
    कि
    धरा पर
    वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर चिंतनपरक
    लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
  9. हमें भी उड़ना सिखाओ .... भीड़ से बचाव का ये रास्ता बहुत भाया ।

    ReplyDelete

कागज की नाव

कागज की नाव इस बार रखी ही रह गई किताब के पन्नों के भीतर अबकी बारिश की जगह बादल आए और आ गई अंजाने ही आंधी। बच्चे ने नाव सहेजकर रख दी उस पर अग...