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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

भीड़ बहुत है

 






कोई सुबह तुम्हारे पैरों के तलवे में दबकर मुस्कुराहट बिखेरती है। तुम्हारे चलने और रंग बिखेरने के बीच कहीं कोई उम्मीद हर बार आकार लेती है। तुमसे उम्मीद का एक गहरा रिश्ता है पंखों पर बिखरे रंगों की तरह। तुम किसी और दुनिया की परी लगती हो हमारे जहां में...। आओ उड़ना सिखाओ हमें भी कि धरा पर



भीड़ बहुत है...।

समय की पीठ

 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...