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Thursday, February 4, 2021

दरारों में दर्ज आदमी

 


दरारों में दर्ज आदमी
भीड़ का चेहरा है।
भीड़ में 
एक तंत्र है
तंत्र
में 
भीड़ नहीं है।
चेहरों पर
भीड़ 
का 
नक्शा 
अब गहरे उकेरा जा रहा है।
दरारों में 
एक दीवार पर
वर्तमान
उकेरा जा रहा है
उसकी पीठ पर 
भविष्य।
उबकी भीड़ लिखी नहीं जा सकती
केवल 
महसूस की जा सकती है।
दरारों में
केवल चेहरे नहीं
शब्दों का अर्थ
उम्मीद
भाव
और 
सच भी 
बारीक कील पर 
टंगे हैं...।
दरारों में
बस रहा. है
कोई समाज...।




10 comments:

  1. व्वाहहह..
    सादर..

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    1. जी यशोदा जी..आपका बहुत आभार

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  2. यह ब्लॉग सिस्टेमेटिक बना है..
    आभार..

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    Replies
    1. जी आपका सहयोग हमेशा प्रार्थनीय है... आभार

      Delete
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 5 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  4. जी बहुत आभार आपका।

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  5. बहुत सुंदर रचना

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    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका...।

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  6. बहुत बारीक अभिव्यक्ति ।

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    Replies
    1. जी बहुत आभार अमृता जी...।

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