कुतरे से आदमी
की कोई
जात नहीं होती।
फटे पायजामें की साबुत जेब
में
रखे सपनों को
अब कोई धूप नहीं दिखाता।
सपनों की पीठ पर
अब
सवालों का कूबड़ निकल आया है
जो सभी देख रहे हैं।
खीझता हुआ आदमी
फटे सपनों से
बतियाने से डरता है
वो
नहीं कर पाता
संवाद
नहीं दे पाता
पायजामें की जेब में रखे
अपने
सपने पर कोई तर्क।
सुबह से रात तक
तर्क वालों के बीच
आदमी
एक उलझा सा सवाल है
जिसे
कोई हल नहीं करना चाहता।
बढ़िया लेखन
ReplyDeleteप्रतिदिन एक पोस्ट किया करें
एक साथ सारी रचनाएँ
पोस्ट न किया कीजिए
एक ही पढ़ी जाती है
बाकी सारी छूट जाती है
अन्यथा न लें
सादर
जी यशोदा जी बहुत आभार आपका...। ध्यान रखूंगा....।
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 07 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteखीझता हुआ आदमी
ReplyDeleteफटे सपनों से
बतियाने से डरता है....
सपने देखने से भी डरता है आज के हालातों में तो।
यही हाल है सामान्य आम आदमी का। अच्छी रचना।
बहुत आभार आपका।
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