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गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

आदमी

 



कुतरे से आदमी

की कोई

जात नहीं होती।

फटे पायजामें की साबुत जेब

में

रखे सपनों को

अब कोई धूप नहीं दिखाता।

सपनों की पीठ पर

अब

सवालों का कूबड़ निकल आया है

जो सभी देख रहे हैं।

खीझता हुआ आदमी

फटे सपनों से 

बतियाने से डरता है

वो

नहीं कर पाता

संवाद

नहीं दे पाता 

पायजामें की जेब में रखे

अपने

सपने पर कोई तर्क। 

सुबह से रात तक

तर्क वालों के बीच

आदमी

एक उलझा सा सवाल है

जिसे 

कोई हल नहीं करना चाहता।


समय की पीठ

 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...