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Wednesday, February 10, 2021

देखो पुरवाई चलने लगी है


 सुबह के 

हाथ में

उसकी हथेली पर 

सूरज होता है।

सूरज की 

हथेली में 

पूरे दिन 

की उम्मीद

वाली 

दमक होती है।

सुबह की शिराएं

मन के शब्दों 

सी 

सुवासित होती हैं।

एक 

सुबह

मैं तुम्हें

अवश्य दूंगा

मेरी सुबह

तुम्हारी होगी

उसके शब्द

अभिव्यक्ति

और 

उम्मीद का उजास

सब 

सच है 

और 

एक गहरी रात

के पीछे

दबे सवाल 

सुबह 

के गर्भ

का

परिणाम हैं।

तुम 

सुबह के लिए

जागती रहो

मेरे साथ 

कई

स्याह रात।

सुबह से पहले 

रात

अधिक गहरी 

हो जाया करती है...।

देखो 

पुरवाई चलने लगी है

सुबह का रथ 

करीब ही है

बहुत करीब...।

9 comments:

  1. सुन्दर सुकोमल मनोभावों की गूढ़ अभिव्यक्ति..

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    Replies
    1. जी...। बहुत आभार आपका...।

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  2. जी बहुत आभार आपका..।

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  3. पुरवाई चलने लगी है सुबह का रथ करीब ही है बहुत करीब...
    सुंदर भावाभिव्यक्ति।
    बधाई

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  4. बहुत आभार अमृता जी...।

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