कांटों
के पेड़
पर
फूल
का उगना
एक
समाज का उदय है।
कंटीले
पौधों का समाज
केवल घूरता
नज़र आता है।
फूलों
का समाज
कांटों
को
स्वीकार नहीं करता।
कांटों का समाज
फूलों को
चेहरा
देता है
मुस्कान भी।
कांटों के समाज में
शोर नहीं है
केवल
विचारों का
हल्लाबोल है।
फूलों का समाज
चेहरों
पर
ओढ़ता है रोज
एक
नया झूठ।
फूलों
का समाज
कांटों पर
शोर
से मिली पराजय
का प्रतिफल है...।
बहुत खूबसूरत रचना है आपकी..
ReplyDeleteसादर नमन
सुप्रभात... आभार आपका...।
Deleteश्रेष्ठतर ।
ReplyDeleteसुप्रभात... आभार आपका।
Deleteबहुत ही खूबसूरत सा तुलनात्मक विश्लेषण..अच्छा लगा..
ReplyDeleteजी बहुत आभार...। सुप्रभात
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