प्रेम
सांझ में
अधिक सुर्ख हो जाता है।
उम्र
का पहला खंड
शाब्दिक
दूसरा
व्यवसायिक
और
तीसरा
मार्मिक
होता है।
जीवन का पहला सिरा
मां के हाथों
ऊन
से बुना गया
आधी
बांह का स्वेटर है।
दूसरा सिरा
जीवनसाथी
के
व्यवहार से
बुना हुआ घर है।
तीसरा सिरा
आपके बुने संस्कारों
का
इम्तेहान है।
जीवन में
असफल कोई नहीं होता
कुछ
हंसने के लिए जीते हैं
कुछ
हंसते हुए जीते हैं।
उम्र के तीसरे सिरे पर
कुछ
खो जाते हैं
कुछ
अपने को पा जाते हैं।
बस और क्या है जिंदगी।
ना खण्ड में ना सिरे में चौथे का जिक्र आया
ReplyDeleteफिक्र है जानने कि चौथे में क्या जाना क्या पाया
अब दूसरे कालखंड में ही विरक्ति हो जाती है, चौथे खंड तक जीवन को समझने और जीने का साहस कम ही बच पाता है, बहुत कुछ दरक रहा है जो टूटता दिख रहा है लेकिन आवाज नहीं हो रही। चौथे खंड का सच अब केवल चुनिंदा विचारों का हिस्सा है। आभार आपका विभा रानी श्रीवास्तव जी।
ReplyDeleteचौथे में स्वेच्छा से संन्यास अर्थात बाल मन तब वर्तुल पूर्ण होता है ।
ReplyDeleteजी लेकिन अब जीवन का हर खंड खुशियों के संन्यास की तरह है...।
Deleteसुन्दर सारगर्भित रचना जीवन सन्दर्भ का शाब्दिक चित्रण..
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
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