बादल की पीठ पर
कुछ
गहरे निशान हैं
जो
फुटपाथ
तक
नज़र आ रहे हैं।
लैंपपोस्ट
से
सिर टिकाए
एक
भयभीत सा बच्चा
उन्हें सहला रहा है।
आसमां की ओर
देख
बुदबुदा रहा है
मां
तुम आईं थीं क्या ?
ये
पैरों के निशान
तुम्हारे ही तो हैं।
देख रहा हूँ
बादल
से
जमीन तक
केवल
मां
ही आ सकती है
सिर पर हाथ फेरने
सुलाने...।
सुनो ना मां
दुनिया
अच्छी नहीं है
ये
फुटपाथ पर
सोने
पर ठिठुरते शरीर पर
चादर भी
नहीं ओढ़ाती...।
ठंड बहुत है
मां
आज रात
तुम्हारे
पैरों के निशान
की गरमाहट से
सो
जाऊंगा।
बस
तुम सुबह तक
इन
निशानों
को मिटने न
देना
मैं तुम्हारे पास आना
चाहता हूँ।
सुनो मां
रात हो गई है
वरना
अभी
निकल पड़ता
इन
पदचिन्हों को
बटोरकर
थैले में रख
तुम्हारी ओर।
रात में बहुत डर लगता है
मां।
ReplyDeleteजय मां हाटेशवरी.......
आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
आप की इस रचना का लिंक भी......
09/02/2021 रविवार को......
पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
शामिल किया गया है.....
आप भी इस हलचल में. .....
सादर आमंत्रित है......
अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
https://www.halchalwith5links.blogspot.com
धन्यवाद
जी बहुत आभार ...।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (9-2-21) को "मिला कनिष्ठा अंगुली, होते हैं प्रस्ताव"(चर्चा अंक- 3972) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
जी बहुत आभार कामिनी जी...।
Deleteरोंगटे खड़े हैं मेरे
ReplyDeleteजी लिखने के बाद मुझे भी ऐसा ही महसूस हुआ...। आभार आपका।
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार...।
Deleteहृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteगहराई से उठती वेदना।
अभिनव सृजन।
जी बहुत आभार आपका।
Deleteमर्माघातक !
ReplyDeleteसुप्रभात...। आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
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