बादल की पीठ पर
कुछ
गहरे निशान हैं
जो
फुटपाथ
तक
नज़र आ रहे हैं।
लैंपपोस्ट
से
सिर टिकाए
एक
भयभीत सा बच्चा
उन्हें सहला रहा है।
आसमां की ओर
देख
बुदबुदा रहा है
मां
तुम आईं थीं क्या ?
ये
पैरों के निशान
तुम्हारे ही तो हैं।
देख रहा हूँ
बादल
से
जमीन तक
केवल
मां
ही आ सकती है
सिर पर हाथ फेरने
सुलाने...।
सुनो ना मां
दुनिया
अच्छी नहीं है
ये
फुटपाथ पर
सोने
पर ठिठुरते शरीर पर
चादर भी
नहीं ओढ़ाती...।
ठंड बहुत है
मां
आज रात
तुम्हारे
पैरों के निशान
की गरमाहट से
सो
जाऊंगा।
बस
तुम सुबह तक
इन
निशानों
को मिटने न
देना
मैं तुम्हारे पास आना
चाहता हूँ।
सुनो मां
रात हो गई है
वरना
अभी
निकल पड़ता
इन
पदचिन्हों को
बटोरकर
थैले में रख
तुम्हारी ओर।
रात में बहुत डर लगता है
मां।