ये
जमीन है
और
हम हैं।
दरक दोनों
रहे हैं।
जमीन
की दरारों
में
गैरत की हरियाली है।
आदमी की
दरार में
हरियाली नहीं
गहरा सूखा है।
सूखने में
जमीन
का रुदन
गहरा है।
जमीन के
कंठ
का हरापन
उसका हलफनामा है।
आदमी
का हलफनामा
पीला हो चुका है।
अब सूखे और आदमी
के बीच
जमीन नहीं है।
आदमी
पैरों नहीं चल रहा
अब जमीन नहीं है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 08 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteजी बहुत आभार..।
ReplyDeleteदिलचस्प... ज़मीन के बहाने कुछ अहम बातें उठाई हैं आपने..
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका...।
Deleteअति सुन्दर कथ्य ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार...।
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