ये
जमीन है
और
हम हैं।
दरक दोनों
रहे हैं।
जमीन
की दरारों
में
गैरत की हरियाली है।
आदमी की
दरार में
हरियाली नहीं
गहरा सूखा है।
सूखने में
जमीन
का रुदन
गहरा है।
जमीन के
कंठ
का हरापन
उसका हलफनामा है।
आदमी
का हलफनामा
पीला हो चुका है।
अब सूखे और आदमी
के बीच
जमीन नहीं है।
आदमी
पैरों नहीं चल रहा
अब जमीन नहीं है।