सांझ
फूलों
के
रंगों
की पीठ पर
रात के
कुछ पहले तक
बैठ
पायजेब बजाती है।
पगली सी
बावरी हो आसमान में
खो जाती है।
पैरों में
फूलों
के नेह का
महावर
सजाती है।
आंखों में
लाज की सुर्खी
से
पूरी रात सजाती है।
फूलों की देह गंध
से
जीवन
महकाती है।
फूलों के
मन में
अपने दुलार
का
एक शोख
संसार बसाती है।
गुनगुनाती सांझ
पीली सी
जिद
में
अक्सर सिंदूरी हो जाती है।
बहुत अच्छा लगा ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका
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