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Monday, February 22, 2021

सूरज ऐसे ही नहीं कहलाता अपराजित योद्धा

 



आओ एक 
सुबह 
ले आएं पश्चिम दिशा से।
सांझ 
की गोद में 
थके सूरज को
जब भी 
उठने में देरी हो जाती है
अगली सुबह
पूरब में 
बादल छा जाया करते हैं।
सूरज 
को मिलता है 
आराम इस तरह
और 
क्यों न मिले
आखिर उसे तो 
रोज 
असंख्य योजन 
का सफर तय करना है।
जब कभी 
दिन में 
पसीने से नहाया हुआ
सूरज 
किसी सख्त बादल 
की 
पीठ पर 
बैठ जाता है 
और सांझ 
तक पहुंच नहीं पाता 
मंजिल तक
तब 
पश्चिम में 
बादल छा जाया करते हैं..।
प्रकृति 
का सिस्टम है
वो भरोसा करती है
सूरज की निष्ठा पर
दिशाओं की
प्रतिबद्धता पर
बादलों 
की सजगता पर
इस मानव की
दुनिया पर
जो 
सूरज के 
उदय के साथ 
जागती है
और 
अस्त होने के साथ 
सो जाती है...।
जब सभी को 
एक 
सिस्टम में 
जीना है
चलना है
बंधना है
तब 
किसी
विरोध शब्द 
की 
जगह 
बनती नहीं है
प्रकृति की इस 
हरी किताब में...।
सब तय है
सूरज का 
हर दिन का सफर
चंद्रमा का 
हर रात  
काले जंगल 
में 
अकेले का
विचरण।
बारिश
धूप
हवा...।
ये सब एक भरोसे के 
सिस्टम 
से बंधे हैं
बिना 
शर्त
हंसते और मुस्कान 
बिखेरते 
सच की नज़ीर लिखते...।
सूरज 
ऐसे ही अपराजित योद्धा
नहीं कहलाता...।

8 comments:

  1. वाह! बहुत सुंदर बिम्ब!!!

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. ये सब एक भरोसे के
    सिस्टम
    से बंधे हैं
    बिना
    शर्त
    हंसते और मुस्कान
    बिखेरते
    सच की नज़ीर लिखते...।
    सूरज
    ऐसे ही अपराजित योद्धा
    नहीं कहलाता...।

    सुन्दर यथार्त
    सच में अपराजित योद्धा ही है सूरज
    पृथवी पर जीवन जीजिविषा से रोज लड़ता है और आखिर जीत की ही विदा लेता

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  4. बढ़िया रचना ! सृष्टि में सूरज सदियों से जीवटता का प्रतीक है | सूरज ना सिर्फ योद्धा है अपितु समभाव प्रजापालक शासक भी है | उसकी रोशनी अमीर के महल मेंजिस भाव से जाती है उसी भाव से गरीब की कुटिया में भी उतरती है |एक नियत परिधि में गोचर करना वो भी सदियों कोई प्रकृति से सीखे |

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  5. बेहतरीन सृजन दर्शन चिंतन से भरपूर

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  6. कितना मनोयोग से किया है विश्लेषण सूरज की दिनचर्या और प्रतिबद्धता प्रकृति की ।
    अभिनव सृजन।
    सुंदर अभिराम।

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