आओ एक
सुबह
ले आएं पश्चिम दिशा से।
सांझ
की गोद में
थके सूरज को
जब भी
उठने में देरी हो जाती है
अगली सुबह
पूरब में
बादल छा जाया करते हैं।
सूरज
को मिलता है
आराम इस तरह
और
क्यों न मिले
आखिर उसे तो
रोज
असंख्य योजन
का सफर तय करना है।
जब कभी
दिन में
पसीने से नहाया हुआ
सूरज
किसी सख्त बादल
की
पीठ पर
बैठ जाता है
और सांझ
तक पहुंच नहीं पाता
मंजिल तक
तब
पश्चिम में
बादल छा जाया करते हैं..।
प्रकृति
का सिस्टम है
वो भरोसा करती है
सूरज की निष्ठा पर
दिशाओं की
प्रतिबद्धता पर
बादलों
की सजगता पर
इस मानव की
दुनिया पर
जो
सूरज के
उदय के साथ
जागती है
और
अस्त होने के साथ
सो जाती है...।
जब सभी को
एक
सिस्टम में
जीना है
चलना है
बंधना है
तब
किसी
विरोध शब्द
की
जगह
बनती नहीं है
प्रकृति की इस
हरी किताब में...।
सब तय है
सूरज का
हर दिन का सफर
चंद्रमा का
हर रात
काले जंगल
में
अकेले का
विचरण।
बारिश
धूप
हवा...।
ये सब एक भरोसे के
सिस्टम
से बंधे हैं
बिना
शर्त
हंसते और मुस्कान
बिखेरते
सच की नज़ीर लिखते...।
सूरज
ऐसे ही अपराजित योद्धा
नहीं कहलाता...।