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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2021

सपनों और रंगों में एक महीन सा फर्क है


 रंगों के शहर में

नजरें

कारोबारी हो जाया करती हैं।

रंगों 

का कारोबार

बदन

पर केंचुए सा 

रेंगता है।

रंगों 

की पीढ़ी 

उम्र 

से पहले

उन्हें ओढ़कर 

सतरंगी आकाश 

पर टांकने लगती है

कोरे जज्बाती 

सपने।

सपनों 

का रंग

जरूरी नहीं

रंगों की दुनिया 

की 

तरह 

आकर्षण 

का आवरण लिए हो।

सपनों और रंगों में

एक 

महीन सा फर्क है

एक दरार 

की कोरों को 

सहलाती हुई हवा

और 

उसकी भूख

का दैहिक 

आवरण।

भटकाव 

और 

लक्ष्य 

के बीच कहीं

सपनों की दीवारों पर

अक्सर रंगों 

की उम्र

रेंगती है केंचुए की भांति।

सपनों 

में रंगों का प्रवेश

उसके आवरण पर 

दरारों की तरह

चटखन छोड़ जाता है।

सपने 

बैखौफ होते हैं

बिना रंगों के 

समाज में 

वहां 

भटकाव का 

कारोबार नहीं होता...।

26 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२५-०२-२०२१) को 'असर अब गहरा होगा' (चर्चा अंक-३९८८) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभार आपका अनीता सैनी जी। मुझे खुशी हुई...।

      हटाएं
  2. गहन विश्लेषणात्मक चिंतन देती सुंदर रचना।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं
  3. यथार्थ के धरातल पर सृजित चिंतनपरक रचना । अति सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. रंगों के माध्यम से कटु सत्य को उजागर कर दिया है ।।गहन प्रस्तुति ।

    जवाब देंहटाएं

  5. रंगों

    का कारोबार

    बदन

    पर केंचुए सा

    रेंगता है।

    बहुत खूब लिखा है, आपने।

    👍👍👍👍👍

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 04 अगस्त 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  8. सपने

    बैखौफ होते हैं//बिना रंगों के *समाज में /वहां /भटकाव का /कारोबार नहीं होता...।//
    जब सपने पूरे होते हैं तो रंग सपनों की चाकरी करते हैं | गूढ़ भावार्थ लिए सार्थक रचना संदीप जी |

    जवाब देंहटाएं

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