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Tuesday, March 2, 2021

सांझ के दरवाजे पर


 

तुम्हें

सांझ से बतियाना पसंद है

मैं जानता हूं

तुम सांझ में खोजती हो

अपने आप को

मुझे 

और 

हमारे अपने दिनों की आभा को।

मैं 

जानता हूं 

तुम्हें सिंदूरी सांझ 

इसलिए भी पसंद है

क्योंकि वह

तुम्हें अंदर से

सिंदूरी रखती है।

यकीन मानो

हमारा सांझ के साथ

ये सिंदूरी रिश्ता

उम्र 

का सच्चा कोष है।

मैं

तुम्हें 

और 

तुम मुझे

खोज सकते हैं

सांझ के दरवाजे पर।

अलहदा कुछ नहीं है

सांझ

तुममें और मुझमें

साथ साथ

उतरती है

रोज

हर पल

हर दिन।

20 comments:

  1. बेहद भावपूर्ण सृजन।
    प्रकृति और मन आपस में गूँथे हुए प्रतीत होते हैं।

    सादर।

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    1. बहुत आभार श्वेता जी....। प्रकृति पर सतत लेखन कर रहा हूं। पत्रकारिता के कालखंड में भी नेचर ही मेरी बीट हुआ करती थी। आभार

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2057..."क्या रेड़ मारी है आपने शेर की।" ) पर गुरुवार 04 मार्च 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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    1. जी बहुत आभार आदरणीय रविंद्र जी।

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  3. वाह! लाजवाब सृजन।
    हृदयस्पर्शी।
    सादर

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    1. बहुत आभार अनीता जी...।

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  4. सुंदर अति सुन्दर भावप्रवण सृजन हृदय तक उतरते उद्गार।
    सुंदर।

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    1. जु बहुत आभार आपका...।

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. आभार आपका अनुराधा जी...।

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  6. साँझ के साथ इस कदर साझा हो जाती है जब जिंदगी तो सूरज बाहर भले डूब जाता हो भीतर सदा खिला रहता है

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    1. जी सच है अनीता जी...। आभार आपका

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  7. साँझ के साथ सिंदूरी आभा , बहुत सुन्दर भाव

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    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी...।

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  8. Replies
    1. आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी...।

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