Followers

Thursday, April 1, 2021

एकांत में बुनती है घर की खिड़की


 

घर की खिड़की

पर 

सीले 

दरवाजे 

की

एक फांस

में 

लटका है

बचपन।

बंद 

घर को 

झीरियां

जीवित रखती हैं

वहां से आती 

हवा 

से 

सीलती नहीं हैं

घर की यादें

बचपन

और 

बहुत कुछ

जो

जिंदगी

अकेले में

एकांत में बुनती है।

एकांत में

बुने गए

दिनों पर

अब 

समय के जाले हैं।

खिड़की

की वो 

फांस

उम्रदराज़

दरवेश है

जो

संभाले है

मौन 

के बीच सच

और 

बचपन

और 

यादें...।

खिड़की का दूसरा 

हिस्सा

अकेलेपन के बोझिल

मौसम की पीड़ाएँ

झेल रहा है

वो 

जानता है

फांस 

और 

उसके कर्म में

आए 

बदलाव

और

झूलते बचपन

के बीच

बीतते

उम्र के कालखंड की

बेबसी को...।

ये 

घर 

और खिडक़ी

एक दिन

किताब 

में गहरे समा जाएंगे...।

13 comments:

  1. जी...आभार आपका यशोदा जी...।

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. जी बहुत आभार आपका...।

      Delete
  3. वाह!अलग अंदाज लेखन का ,गहन भावाभिव्यक्ति,
    सुंदर सृजन।

    ReplyDelete
  4. अनुभूतियों का अथाह सागर है आपके पास, और आप उसके एक एक मोती अपनी रचना को समर्पित करते हैं ...सुंदर सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका जिज्ञासा जी...। मन खोजता रहता है प्रकृति में कभी अपने आप को, कभी प्रकृति को...।

      Delete
  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आलोक जी...।

      Delete
  6. खिड़की से झांकती जीवन की सच्चाई ..… न जाने कितने लम्हे समेटे हुए और उम्र भर के अनुभव ।
    कुछ फांस ऐसी लगी होती हैं जो ज़िन्दगी भर नहीं निकलती ।
    सुंदर अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत आभार आपका संगीता जी....।

      Delete
  7. Replies
    1. जी बहुत आभार आपका आदरणीय भाईसाहब।

      Delete

ये हमारी जिद...?

  सुना है  गिद्व खत्म हो रहे हैं गौरेया घट रही हैं कौवे नहीं हैं सोचता हूं पानी नहीं है जंगल नहीं है बारिश नहीं है मकानों के जंगल हैं  तापमा...