तुमने
फूल
देखा मैंने देखी
उसकी गहराई।
तुमने
रंग देखे
मैंने
देखी
रंगों की जुगलबंदी।
तुमने
फूल का
खिलना देखा
मैंने
उसके अंकुरण के सफर को।
तुमने
उसका सौंदर्य देखा
मैंने
देखी सादगी।
तुमने
उसके सौंदर्य के शिखर
तक
पहुंचाई अपनी
ख्वाहिश
मैंने
उसे
केवल खिलने दिया।
तुम
खड़े रहे उसके
उस खिले हुए
मौसम में उसके आसपास
जैसा
भंवरे को
होती है
फूल के रस की आस।
मैं
उसे
बस रोज देखता रहा
उसकी
सादगी के साथ
उसकी उम्र के
अच्छे दिनों में।
तुम
तब वहां से बढ़ गए
अगले
फूल की ओर
जब
इसकी पत्ती पर
उम्र की
पहली झुर्री
आई थी नज़र।
तुम अब नहीं आते वहां
जहाँ कभी
तुम्हारी नज़रें
ठहर जाने का वादा
करतीं थीं पूरी उम्र।
तुम्हें
बताऊँ
अब
वो फूल
सूख चुका है
झुर्रियों वाले
उम्रदराज़ मौसम को
जी रहा है
मैं
आज
भी उसके
रेगिस्तान में
उसके साथ हूँ।
अब बस
वो
फूल कभी कभार
सूखने
के
दर्द से
कराहता है
कभी कभी
हवा के साथ
उसकी
उम्र वाली कराह
सुनाई देती है...।
आभार आपका आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका...
हटाएंबहुत बढ़िया ,कितनी खूबसूरती से फूल और इंसान के जीवन को एकीकार कर दिया आपने । दोनो का सफर एक जैसा ही था,नायाब सृजन ।
जवाब देंहटाएंआभार जिज्ञासा जी...। आपकी टिप्पणी श्रेष्ठ करने की प्रेरणा देती है...
हटाएंगहन भाव
जवाब देंहटाएंअनीता जी बहुत आभार...।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका।
हटाएंबस नजर और नजरिए का फेर है
जवाब देंहटाएंसच्चा साथी सुख के साथ दुःख में बराबर का हिस्सेदार होता है।
बहुत ही सुंदर सृजन ,आपको नववर्ष और नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये
जी बहुत आभार आपका कामिनी जी...।
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका अनुराधा जी...।
हटाएंदोनों के देखने में फर्क ने फूल के जन्म की पूरी कहानी बयां कर दी ...
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका संगीता जी...।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजी बहुत आभार आपका।
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