तुमने
फूल
देखा मैंने देखी
उसकी गहराई।
तुमने
रंग देखे
मैंने
देखी
रंगों की जुगलबंदी।
तुमने
फूल का
खिलना देखा
मैंने
उसके अंकुरण के सफर को।
तुमने
उसका सौंदर्य देखा
मैंने
देखी सादगी।
तुमने
उसके सौंदर्य के शिखर
तक
पहुंचाई अपनी
ख्वाहिश
मैंने
उसे
केवल खिलने दिया।
तुम
खड़े रहे उसके
उस खिले हुए
मौसम में उसके आसपास
जैसा
भंवरे को
होती है
फूल के रस की आस।
मैं
उसे
बस रोज देखता रहा
उसकी
सादगी के साथ
उसकी उम्र के
अच्छे दिनों में।
तुम
तब वहां से बढ़ गए
अगले
फूल की ओर
जब
इसकी पत्ती पर
उम्र की
पहली झुर्री
आई थी नज़र।
तुम अब नहीं आते वहां
जहाँ कभी
तुम्हारी नज़रें
ठहर जाने का वादा
करतीं थीं पूरी उम्र।
तुम्हें
बताऊँ
अब
वो फूल
सूख चुका है
झुर्रियों वाले
उम्रदराज़ मौसम को
जी रहा है
मैं
आज
भी उसके
रेगिस्तान में
उसके साथ हूँ।
अब बस
वो
फूल कभी कभार
सूखने
के
दर्द से
कराहता है
कभी कभी
हवा के साथ
उसकी
उम्र वाली कराह
सुनाई देती है...।