खूबसूरती
के
पीछे
कोई
तर्क नहीं होता
बस एक
अनुभूति होती है
जो
अभिव्यक्त
नहीं की जा सकती।
अनुभूति
श्वेत-श्याम
और
रंगमयी
भी नहीं होती
केवल मन में
कहीं
शब्दों की अनकही
भाषा
सरीखी है।
अनुभूति
की महक होती है
जो
बिना कहे
अधिक गहरी
सुनी जा सकती है।
अनुभूति
में फूलों का रंग
वैसा ही होता है
जैसे
कोई
सबसे अधिक पढ़ी गई
किताब
का हर
वक्त सिराहने होना।
अनुभूति
जंगल नहीं बनाती
वो
मन में मथे
शब्दों
का
आभासी संसार अवश्य
बसाती है...।
ठीक कहा आपने।
ReplyDeleteबहुत आभार आपका।
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ अप्रैल २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत आभार श्वेता जी..।
Deleteबहुत सुंदर संदीप जी | अनुभूति की परिभाषा इस से बढ़कर क्या हो सकती है ! भावपूर्ण सृजन के लिए बधाई |
ReplyDeleteबहुत आभार रेणु जी.. । हौसला बढ़ाती आपकी स्नेहिल टिप्पणी के लिए.. ।
Deleteअनुभूति
ReplyDeleteजंगल नहीं बनाती
वो
मन में मथे
शब्दों
का
आभासी संसार अवश्य
बसाती है...।
बहुत सुन्दर बात ... अनुभूति शायद ऐसी ही होती है .
जी बहुत आभार आपका संगीता जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक ।
ReplyDelete--
जी...आभारी हूं आपका आदरणीय।
Deleteसत्य
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका विमल जी।
Deleteअनुभूति जीवन के अनुभव का आईना होती है, अनुभूति का सुंदर विश्लेषण ।
ReplyDeleteजी बहुत आभार जिज्ञासा जी . .
ReplyDeleteसचमुच खूबसूरती के पीछे कोई तर्क नहीं होता, ना ही उसकी कोई परिभाषा हो सकती है। कहते हैं ना, खूबसूरती तो देखनेवाले की निगाह में होती है।
ReplyDeleteजी बहुत आभार मीना जी...।
Deleteआदरणीय सर, अनुभूति विषय पर अनुभूतियों से भरी हुई सुंदर रचना। आपकी इस रचना को पढ़ कर शायरी पढ़ने का सा आनंद आता है और मन को बहुत शांति और सहजता की अनीभूति होती है । बहुत बहुत आभार इस सुंदर रचना के लिए
ReplyDeleteजी बहुत आभार...
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी बहुत आभार...
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