खूबसूरती
के
पीछे
कोई
तर्क नहीं होता
बस एक
अनुभूति होती है
जो
अभिव्यक्त
नहीं की जा सकती।
अनुभूति
श्वेत-श्याम
और
रंगमयी
भी नहीं होती
केवल मन में
कहीं
शब्दों की अनकही
भाषा
सरीखी है।
अनुभूति
की महक होती है
जो
बिना कहे
अधिक गहरी
सुनी जा सकती है।
अनुभूति
में फूलों का रंग
वैसा ही होता है
जैसे
कोई
सबसे अधिक पढ़ी गई
किताब
का हर
वक्त सिराहने होना।
अनुभूति
जंगल नहीं बनाती
वो
मन में मथे
शब्दों
का
आभासी संसार अवश्य
बसाती है...।