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शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

भीड़ बदहवास सी भाग रही है


आज से कोरोना काल पर कविताएं...

1.


सुबह 

कोई हिचकी

गहरे समा गई

किसी 

परिवार

की 

आंखों से

छिन गया

सूरज।

आंखों में

सपनों की फटी हुई

मोटी सी पपड़ी है

जिसमें 

गहरे 

आंसुओं का नमक है।

सभ्यता

और 

मानवीयता

का नमक हो जाना

आदमी

की खिसियाहट भरी

चालकी का

टूटकर

कई हिस्सों में 

बिखर 

जाना है।

सुबह

सूरज के साथ जागा 

कोई परिवार

अपने घर

असमय घुस आई

स्याह रात में

दीवारों से सटा

सुबक रहा है

देख रहा है

अंदर और बाहर

गहराती रात।

दूर 

कहीं कोई

वृद्धा

सूखी पसलियों को

पीट रही है

झुर्रियों से बहते

आंसू

में मिट्टी है

बहुत सारा नमक भी।

क्रूर बाजार

घूर रहा है

वृद्धा के विलाप पर।

भीड़

भाग रही है

बदहवास सी

अपनों के साथ

अपनों से दूर।

अखबार

का फटा

हिस्सा

काला है

खबर है

जहरीली हो गई है हवा...।

16 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१७-०४-२०२१) को 'ज़िंदगी के मायने और है'(चर्चा अंक- ३९४०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह! आज के दृश्य का मर्मांतक वर्णन । सादर शुभकामनाएं आपको ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कुछ और लिखना बहुत मुश्किल हो रहा है, मन को कैसे रोका जा सकता है। जब चारों ओर चीत्कार हो तब मन वही लिखता है जो लिखा जाना चाहिए। आभार आपका जिज्ञासा जी।

      हटाएं
  3. वर्तमान परिदृश्य का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करती आपकी रचना की गहराई मन को छू गई,सादर नमन

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभारी हूं आपका अभिलाषा जी।
      आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।

      हटाएं
  4. अखबार

    का फटा

    हिस्सा

    काला है

    खबर है

    जहरीली हो गई है हवा...।
    कितनी मार्मिक रचना !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत आभारी हूं आपका उषा किरण जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।

      हटाएं
  5. "खबर है

    जहरीली हो गई है हवा...।"

    हवा ही नहीं मानसिकता भी जहरीली हो गई है संदीप जी,
    बेहद मार्मिक सृजन,सादर

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    उत्तर
    1. बहुत आभारी हूं आपका कामिनी जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।

      हटाएं
  6. उत्तर
    1. बहुत आभारी हूं आपका अनुराधा जी। आप प्रकृति पर यदि हमारी पत्रिका पढना चाहती हैं तब मुझे इस नंबर 8191903651 पर अपना व्हाटसऐप नंबर भेजिएगा। आभार। देखियेगा हमारी पत्रिका और उस पर टिप्पणी भी चाहते हैं।

      हटाएं
  7. सामायिक हालतों पर हृदय स्पर्शी सृजन।
    शब्द शब्द दारुण कहानी।

    जवाब देंहटाएं

अभिव्यक्ति

 प्रेम  वहां नहीं होता जहां दो शरीर होते हैं। प्रेम वहां होता है जब शरीर मन के साथ होते हैं। प्रेम का अंकुरण मन की धरती पर होता है।  शरीर  क...