तुम्हारे
बचपन ने देख लिए हैं
जंगल, नदी, पेड़
और
उनमें समाई खुशियां।
तुमने
देख ली है
प्रकृति की दुशाला
कितनी कोमल होती है।
तुमने देखा है
नदियां बहती हैं
कल कल।
तुमने देखा है
पक्षी
छेड़ते हैं
मौसम की तान।
तुमने देखा है
बारिश और अमृत बूंदों का
वो पनीला संसार।
तुमने महसूस की है
हवा की पावनता।
तुमने
देखा है उम्रदराज
पेड़ों पर
तितली और चीटियों
का मुस्कुराता जीवन।
तुमने
सुना है हवा से
पेड़ कैसे बतियाते हैं।
मेरी बच्ची
तुम ये सब
संजो लेना अपनी
यादों में।
कल बचपन नहीं होगा
तुम्हारा
लेकिन
जीवन की दोपहर
आएगी
और साथ आएगा
सूखापन लिए
दांत कटकटाता भविष्य।
तब तुम
यादों की किताब
के पन्ने
करीने से पलटना
क्योंकि तब तक
संभव है
यादों में भी आ जाए
उम्र का पीलापन।
बस ध्यान रखना
यादें पीली होकर
जीवित रहती हैं
बस सूखने पर
खत्म हो जाया करती हैं...।
बहुत मार्मिक उद्बोधन संदीप जी। कितनी टीस छुपी है इन शब्दों में! हमने जो देखा वो आज की पीढ़ी देखने से वंचित रह गई और जो आज बचा खुचा दिखाई देता है शायद कल ना बचे। उसे संजो कर रखना भी शायद संभव ना हो। बड़ी डराती है ये बात कहीं ऐसा ना हो आने वाली पीढ़ी के लिए कुछ बचे ही ना। एक बेटी के लिए नहीं बल्कि हरेक के लिए है ये संदेश। कोई सुनना ना चाहे तो अलग बात है। सार्थक और मन को छूने वाली रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं। रचना के साथ संलग्न चित्र सराहना से परे है। इस प्यारे से नयनाभिराम चित्र के लिए विशेष आभार।
ReplyDeleteहमेशा की तरह मन को गहरे छूती हुई आपकी प्रतिक्रिया....। आप कितना अच्छा और गहन सोचती हैं, मैं ऐसा सोचता हूं कि हमें अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए ताकि कल बच्चे अनायास आए संकटों में उलझकर खो ना जाएं...उनके साथ उनका एक जीवंत अतीत रहे जिसके दम पर वे उन मुसीबत वाले दिनों में मुस्कुराते रहें...। फोटोग्राफ मेरी बेटी का ही है....रेणु जी आभारी हूं आपका...आपकी प्रतिक्रिया हमेशा ही सार्थक करने की प्रेरणा बनती है...।
ReplyDeleteसंदीप जी, बिटिया का परिचय पा अपार हर्ष हुआ। हार्दिक स्नेह के साथ कुछ शब्द उसके नाम ------
ReplyDeleteलिए अनूठा भाव तरल
मंद- मंद मुस्काती बिटिया
निश्चल नैना, धरा रुप धर
ना नैना बीच समाती बिटिया
करे सुपुर्द सपनें सब उसके
मनचाहे रंग भरती उनमें
बीजारोपण करती करुणा का
थामे विश्वास की थाती बिटिया
बन चिड़िया चहके हरी डाल पर
है मनभावन मोहक चितवन,
नयन सीप से निर्मल मन झांके,
हृदय को खूब ही भाती बिटिया!!!
पुनः ढेरों शुभकामनाएं
अनुपम सृजन...बिटिया के ओर से प्रणाम स्वीकार कीजिएगा...। मैंने अपनी दोनों बेटियों को प्रकृति के बेहद करीब रखने का प्रयास किया है, मैं समझता हूं उन्हें वे सब इस दौर में महसूस करना चाहिए जो संभवतः उनका भविष्य उन्हें न दे, जब भविष्य का वह दौर निष्ठुर हो जाए तब भी वे अंदर से सूखें न वे अंदर से अंकुरित रहें तभी वह इस प्रकृति के संरक्षण की वाहक बन पाएंगी...। आभार आपका रेणु जी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया और विशेष नेह के लिए।
Deleteसुंदर चित्र और अनुपम सीख! प्रकृति का संरक्षण करना हम्में से हरेक की ज़िम्मेदारी है
ReplyDeleteबहुत आभार आपका अनीता जी।
Deleteबहुत ही सुंदर संदेश,हम यदि कुछ छोड़ जाएगे तभी तो बच्चें उसे संभालेंगे ,काश सभी समझ जाते और आने वाली पीढ़ी सिर्फ यादों में नहीं बल्कि सचमचु हमें शुक्रिया अदा कर इसका आनंद उठाये ,बिटिया की छवि बहुत प्यारी है और उसपर लिखी सखी रेणु की कविता लाजबाब,मेरी तरफ से बेटी को ढेर सारा प्यार, सादर नमन आपको
ReplyDeleteआभारी हूं आपका कामिनी जी...आपकी इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए। ये प्रकृति वाकई बहुत अच्छी होती है क्योंकि ये प्रकृति को पसंद करने वालों को अक्सर एक समूह में ले ही आती है....। बिटिया की ओर से प्रणाम स्वीकार कीजिएगा। आभार आपका
Deleteबहुत अच्छा संदेश ...
ReplyDeleteसब कुछ संजो लेना समय रहते हुवे और कार्य करना उनको प्रकृति में भी संजोने के लिए ... ये सब यादों ही नहीं उस समय भी काम आने वाला है ... अच्छी रचना ...
जी बहुत आभारी हूं आपका दिगम्बर नासवा जी।
ReplyDeleteप्रकृति और बेटी हमारे लिए बिलकुल एक जैसे होने चाहिए,उन्हें धीरे से,तन्मयता से,कोमल भावों के साथ सहला सहला पालते पोसते रहें,वे हमें आगे के समय में हमे अपार प्रेम और छाया देंगी,बहुत सुंदर भाव संदीप जी,प्यारी बेटी को मेरा प्यार और स्नेह भरा आशीष।
ReplyDeleteजी बहुत आभारी हूं आपका जिज्ञासा जी। सच कहा आपने बिटिया और प्रकृति को एक ही तरह सोचना होगा क्योंकि दोनों पर ही संकट मंडरा रहा है, हम कैसे मानव हो गए कि हम दोनों को ही सहेज न पाए....। बिटिया की ओर से प्रणाम स्वीकार कीजिएगा।
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