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Wednesday, June 9, 2021

ओ री जिंदगी...सुन तो सही











जिंदगी का फलसफा भी
अजीब है
जो मुस्कुराते हैं
वह अंदर से
दुखी
माने जाते हैं
जो
मौन रहते हैं
उन्हें
विचारों का प्रवाह
प्रखर
बना देता है
जो
कहना जानते हैं
उनकी बात
बेमानी है
जो
मन में दबाते हैं
उनकी
सब सुनना चाहते हैं
मेवे
वे बेचते हैं
जिन्हें
सब्जी भी
मिल नहीं पाती।
सोचता हूँ
कैसी
दुनिया है
हंसने बगीचे जाती है
घर को
उलझनों
की भेंट चढ़ाती है।
पढ़े लोग
श्रोता होते हैं
अनपढ़
और
उलझे लोग
जीवन दर्शन पर
बहस का हिस्सा हैं।
सोते शरीर हैं
जागता केवल
दिमाग है
भूखे
सूखी रोटी खाकर
नंगे
पाईपों में
ठहाके लगाते हैं
समृद्ध
विचारों की संकरी
पाईप
में
बदहवास से
उम्र बिता देते हैं।
किसी मोटे पेट वाले ने
अधनंगे बच्चे को देखकर
उसे घूरकर देखा
और
गहरी खाई में
धकेलना चाहा
वो अधनंगा
लड़का
ठहाके लगाकर
नाचने लगा।
सोचिए
जिंदगी हार रही है
या
हम
जिंदगी हार रहे हैं।
बचपन के बाद
कभी नहीं हंसते
अब
हर पल
हम
अपने जंजाल में
खुद फंसते हैं
और
फंसते जाते हैं।
जिंदगी
की भोर
से
सांझ तक का सफर
बिना
जीये ही बिता लिया
जब
लाठी वाली
रात
दांत कटकटाती है
तब जिंदगी का भूगोल
इतिहास में
तब्दील हो जाता है...।

24 comments:


  1. जिंदगी
    की भोर
    से
    सांझ तक का सफर
    बिना
    जीये ही बिता लिया
    जब
    लाठी वाली
    रात
    दांत कटकटाती है
    तब जिंदगी का भूगोल
    इतिहास में
    तब्दील हो जाता है...।..जीवन के कई संदर्भों को उठाती,जीवन दर्शन को समझाती,अन्तर्मन को छूती सुन्दर रचना ।

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    Replies
    1. आभार आपका जिज्ञासा जी...। आपकी प्रतिक्रिया बहुत गहन होती है...।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 10 जून 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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    Replies
    1. आभार आपका आदरणीय रवींद्र जी। मेरी रचना रचना को सम्मान देने के लिए बहुत आभारी हूं।

      Delete
  3. समृद्ध
    विचारों की संकरी
    पाईप
    में
    बदहवास से
    उम्र बिता देते हैं।

    खुद ही दुरूह बनाते हम ज़िन्दगी ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभारी हूं संगीता जी...।

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  4. वास्तविक जीवन का कटु चित्रांकन मुग्ध करता है, शुभकामनाओं सह।

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    Replies
    1. जी बहुत आभारी हूं आपका आदरणीय शांतनु जी।

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  5. जीवन का विरोधाभास ही इसे शायद मोहक बनाता है, वरना कौन आने की ख्वाहिश करेगा सूने सपाट वीराने में

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  6. जी बहुत आभारी हूं आपका

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  7. " सोचिए
    जिंदगी हार रही है
    या
    हम
    जिंदगी हार रहे हैं। " - बहुत कुछ सोचने के लिए मज़बूर करने वाली यथार्थ भरी रचना ...

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    Replies
    1. बहुत आभार आपका सुबोध जी।

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  8. दिल को छूती विचारणीय पोस्ट।

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    Replies
    1. बहुत आभार आपका ज्योति जी।

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  9. जीवन का विरोधाभास व्यक्त करती सुन्दर रचना!

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    Replies
    1. बहुत आभार आपका अनुपमा जी।

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  10. बहुत सुंदर

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    Replies
    1. बहुत आभार आपका ओंकार जी।

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  11. जीवन की विसंगतियों को बहुत सूक्ष्म दृष्टि से देखा और उकेरा है आपने ।
    बहुत गहन दर्शन।
    सुंदर सृजन।
    बहुत बहुत बधाई।

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  12. बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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  13. बहुत खूब सराहनीय रचना

    ReplyDelete

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