सावन बरसता था
जब
लगता था जैसे
मन
और
घर
मनाने को उत्सुक हैं
रक्षा का कोई पर्व।
संदेश के साथ
चिठिया में भेज दिया जाता था
बहन
को बचपन
बेटी
को
दुलार।
सावन
की पहली फुहार से ही
पूरा घर
दरवाजे की
चौखट के सिराहने
रख देता था
अपनी आंखें
इंतजार में अपनी दुलारी के।
चिठिया पाकर
उतावली सी
बहना
बतियाती थी सावन से
भादो तक
जाना है घर
जिनके संग
जीया है बचपन
सीया है जीवन
पीया है दर्द
और
लिया है
सभी को खुश रखने का संकल्प।
सावन देखता था
बहन की आंखों में सूखे इंतजार को
और
भीगी चिठिया पाकर
चहक उठती थी
पिया के घर
से
जाने को
बाबुल के दर।
आंगन की चौखट पर
सजी आंखें
दूर से देख लेती थीं
बहन को
उसकी आहट को
उसके घर में कदम रखते ही
सफल हो जाता था
सावन का आना
भादो में ढल जाना।
रिश्तों के मर्म में देखो
अब कहां है
और कितना है
सावन
कितना है
भादो
और कितना है
इंतजार...।
अब
रोपिये ना दोबारा
मुट्ठी भर सावन
इस धरा में
मुट्ठी भर
रिश्ते
अपनों के बीच
और
मुट्ठी भर
यादें बचपन की
जो
सावन बन जाएंगी
तब
आंखें नहीं बरसेंगी
केवल
बरसेगा सावन और भादो।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 08 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आपका यशोदा जी...। मेरी रचना का सम्मान देने के लिए साधुवाद
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (8-8-21) को "रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन"(चर्चा अंक- 4150) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
--
कामिनी सिन्हा
कामिनी जी नमस्कार...आभार आपका...। मेरी रचना को मान देने के लिए साधुवाद
Deleteबहुत सुंदर भाव पिरोये हैं | सुंदर रचना |
ReplyDeleteबहुत आभार आपका अनुपमा जी...।
Deleteसावन और बेटी और बहनों का घर आना , अब न वो सावन हैं न बुलावे हैं न तीज और न त्योहार । एक हूक सी उठती है और आँख नम हो जाती हैं ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना ।
क्या बात कही दीदी आपने☺️🙏
Deleteसच...बहुत ही गहन भाव है इस रिश्ते का...। आभार आपका संगीता जी...।
Deleteवाह 🌼♥️
ReplyDeleteबहुत आभार शिवम जी...
Deleteरोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन// बहुत कसक है इन शब्दों में !
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका रेणु जी।
Deleteबेटी के और बहन की भावनाओं को बयां करती भावात्मक और बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका मनीषा जी।
Deleteवाह
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी।
Deleteयादें बचपन की
ReplyDeleteजो
सावन बन जाएंगी
तब
आंखें नहीं बरसेंगी
केवल
बरसेगा सावन और भादो। अन्तर्मन को छूती समसामयिक संदेश देती सुंदर भावभरी रचना।
जी बहुत आभार आपका आदरणीय जिज्ञासा जी। बहुत प्रेरक प्रतिक्रिया है।
Deleteभावपूर्ण सजल रचना - - नमन सह।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका आदरणीय शांतनु जी।
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका आदरणीय अनुराधा जी।
Deleteबहुत ही सुंदर सृजन मन को छूते भाव।
ReplyDeleteसादर
जी बहुत आभार आपका आदरणीय अनीता जी।
Deleteसच अब पहले जैसा सावन न रहा
ReplyDeleteटूटते-बिखरते रिश्तो को फिर से पिरोने की कोशिश तो हो सकती है
आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के आभार
Deleteबहुत सुंदर मनोरम रचना
ReplyDeleteआपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के आभार
Deleteबहुत खूबसूरत रचना सर
ReplyDeleteआपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के आभार
Deleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, अब के बरस मोहे सावन पे बाबुल ... यह गीत याद आ गया
ReplyDeleteआपकी प्रेरक प्रतिक्रिया के आभार
ReplyDeleteवाह ! बहुत सराहनीय रचना |
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