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Friday, August 6, 2021

रोपिये ना दोबारा मुट्ठी भर सावन

सावन बरसता था

जब 

लगता था जैसे

मन

और 

घर

मनाने को उत्सुक हैं 

रक्षा का कोई पर्व।

संदेश के साथ

चिठिया में भेज दिया जाता था 

बहन 

को बचपन

बेटी

को 

दुलार। 

सावन 

की पहली फुहार से ही

पूरा घर

दरवाजे की

चौखट के सिराहने  

रख देता था

अपनी आंखें

इंतजार में अपनी दुलारी के।

चिठिया पाकर

उतावली सी

बहना

बतियाती थी सावन से

भादो तक 

जाना है घर

जिनके संग

जीया है बचपन

सीया है जीवन

पीया है दर्द

और

लिया है 

सभी को खुश रखने का संकल्प।

सावन देखता था

बहन की आंखों में सूखे इंतजार को

और

भीगी चिठिया पाकर

चहक उठती थी

पिया के घर

से 

जाने को 

बाबुल के दर।

आंगन की चौखट पर 

सजी आंखें

दूर से देख लेती थीं

बहन को

उसकी आहट को

उसके घर में कदम रखते ही

सफल हो जाता था

सावन का आना

भादो में ढल जाना।

रिश्तों  के मर्म में देखो 

अब कहां है

और कितना है

सावन

कितना है

भादो 

और कितना है 

इंतजार...।

अब 

रोपिये ना दोबारा

मुट्ठी भर सावन

इस धरा में

मुट्ठी भर

रिश्ते

अपनों के बीच

और 

मुट्ठी भर 

यादें बचपन की

जो

सावन बन जाएंगी

तब

आंखें नहीं बरसेंगी

केवल

बरसेगा सावन और भादो। 





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