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Thursday, August 5, 2021

...हां क्रोध ऐसा ही तो होता है

 





















क्रोध केवल क्रोध है
अपलक धधकता हुआ समय।
विचारों की शिराओं में
सुर्ख सा एक चिलचिलाता प्रवाहवान द्रव्य।
बेनतीजतन इरादों का गुबार
एक बेतरतीब सी जिद।
हार का कुतर्कसंगत चेहरा
झुंझलाहट का बदरंग कैनवस।
सुलेख की किताब का फटा हुआ आखिर पन्ना
जीत के चेहरों के बीच तपे जिस्म सा
हां क्रोध ऐसा ही होता है।
 


11 comments:

  1. Replies
    1. आभार आदरणीय जोशी जी...

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  2. मीना जी बहुत आभार...। साधुवाद

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  3. वाकई, क्रोध को तभी तो क्षणिक पागलपन कहा गया है

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  4. बिल्कुल सही कहा आपने
    बेनतीजतन इरादों का गुबार
    एक बेतरतीब सी जिद।
    ही है क्रोध!

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  5. सुन्दर प्रस्तुति

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  6. क्रोध पर कम शब्दों में सटीक चित्रण करती रचना, सुंदर सार्थक।

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  7. बेनतीजतन इरादों का गुबार
    एक बेतरतीब सी जिद।
    सुंदर सृजन आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।

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  8. क्या ख़ूब कहा।
    बहुत ही बढ़िया।
    सादर

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  9. बहुत सुंदर सृजन

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