क्रोध केवल क्रोध है
अपलक धधकता हुआ समय।
विचारों की शिराओं में
सुर्ख सा एक चिलचिलाता प्रवाहवान द्रव्य।
बेनतीजतन इरादों का गुबार
एक बेतरतीब सी जिद।
हार का कुतर्कसंगत चेहरा
झुंझलाहट का बदरंग कैनवस।
सुलेख की किताब का फटा हुआ आखिर पन्ना
जीत के चेहरों के बीच तपे जिस्म सा
हां क्रोध ऐसा ही होता है।
सटीक
ReplyDeleteआभार आदरणीय जोशी जी...
Deleteमीना जी बहुत आभार...। साधुवाद
ReplyDeleteवाकई, क्रोध को तभी तो क्षणिक पागलपन कहा गया है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने
ReplyDeleteबेनतीजतन इरादों का गुबार
एक बेतरतीब सी जिद।
ही है क्रोध!
सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteक्रोध पर कम शब्दों में सटीक चित्रण करती रचना, सुंदर सार्थक।
ReplyDeleteबेनतीजतन इरादों का गुबार
ReplyDeleteएक बेतरतीब सी जिद।
सुंदर सृजन आदरणीय , बहुत बधाइयाँ ।
क्या ख़ूब कहा।
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया।
सादर
बहुत सुंदर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
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