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क्रोध जिद गुबार प्रवाहवान द्रव्य सुर्ख जिस्म हार धधकता लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

...हां क्रोध ऐसा ही तो होता है

 





















क्रोध केवल क्रोध है
अपलक धधकता हुआ समय।
विचारों की शिराओं में
सुर्ख सा एक चिलचिलाता प्रवाहवान द्रव्य।
बेनतीजतन इरादों का गुबार
एक बेतरतीब सी जिद।
हार का कुतर्कसंगत चेहरा
झुंझलाहट का बदरंग कैनवस।
सुलेख की किताब का फटा हुआ आखिर पन्ना
जीत के चेहरों के बीच तपे जिस्म सा
हां क्रोध ऐसा ही होता है।
 


समय की पीठ

 कहीं कोई खलल है कोई कुछ शोर  कहीं कोई दूर चौराहे पर फटे वस्त्रों में  चुप्पी में है।  अधनंग भागते समय  की पीठ पर  सवाल ही सवाल हैं। सोचता ह...